महाकुम्भ अमृत स्नान - एक वेदान्तिक विचार

महाकुम्भ अमृत स्नान - एक वेदान्तिक विचार 


भारत प्रयागराज में विश्व का विशालतम मेला आयोजित हुवा। यह हम भारत वासियों के लिए अति हर्ष का विषय है। इसका कई माध्यमों से प्रचार भी हो रहा है। अतः हम इसी का यहाँ पुनः विषेण प्रस्तुत न करते, वेदान्तिक बिंदु पर अपने विचार प्रस्तुत करते है।

अमृत स्नान

कितना अद्भुत विचार ने मुझे स्पर्श किया, आपसे साझा करता हूँ।  विगत समय में महाकुम्भ में सम्मिलित होने के लिए अपार आस्थावानों को जाते देखा। विचार किया की यह अमृत सन्ना क्या है? अमृत के प्रकट होने की कथा तो सभी ने सुनी होगी।  तो उसका उसका मर्म क्या है व अमृत का रहस्य क्या है?

जब मानुष अपने मन मस्तिष्क रूपी सागर को शुद्ध स्वरुप आत्मा (जो की परमात्मा का अंश है) के आधार बना के मथता या मंथन करता है, तद्पश्चात सांसारिक अनाकर्षित (विरुद्ध) व आकर्षित विचारों का उत्सर्जन होता है। यह जीवन मृत्यु का कारक है।  हलाहल विष स्वरुप अनाकर्षित विचार से भय व आकर्षित विचारों के प्रति मोह, यही मोह व भय के विचार मनुष्य को जीवन-मृत्यु के चक्र में ग्रस्त होता है। किन्तु मनुष्य यह मोह व भय से परे परम तत्व को जानने के लिए जीवन सरिता के संग ज्ञान सरिता का सगम कर उसमे जब डुबकी (ध्यान) लगता है तब वह अमृत स्नान करता है व सत्-चित्-आनंद (मोक्ष) की अवस्था को प्राप्त करता है।

आज महाशिवरात्रि है, अतः आपसे अनुरोध है, अपने मन मस्तिष्क रूपी सागर मंथन से उपजे हलाहल विष स्वरुप अशुभ अशोभनीय विचारों को अपने कंठ में धारण करें। मुख से बहार न आने दे। महादेव के प्रति अपने भक्ति को ओर प्रगाढ़ करें!

आपको महाशिवरात्रि की शुभकामनायें! 


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