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महाकुम्भ अमृत स्नान - एक वेदान्तिक विचार

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महाकुम्भ अमृत स्नान - एक वेदान्तिक विचार  भारत प्रयागराज में विश्व का विशालतम मेला आयोजित हुवा। यह हम भारत वासियों के लिए अति हर्ष का विषय है। इसका कई माध्यमों से प्रचार भी हो रहा है। अतः हम इसी का यहाँ पुनः विषेण प्रस्तुत न करते, वेदान्तिक बिंदु पर अपने विचार प्रस्तुत करते है। अमृत स्नान कितना अद्भुत विचार ने मुझे स्पर्श किया, आपसे साझा करता हूँ।  विगत समय में महाकुम्भ में सम्मिलित होने के लिए अपार आस्थावानों को जाते देखा। विचार किया की यह अमृत सन्ना क्या है? अमृत के प्रकट होने की कथा तो सभी ने सुनी होगी।  तो उसका उसका मर्म क्या है व अमृत का रहस्य क्या है? जब मानुष अपने मन मस्तिष्क रूपी सागर को शुद्ध स्वरुप आत्मा (जो की परमात्मा का अंश है) के आधार बना के मथता या मंथन करता है, तद्पश्चात सांसारिक अनाकर्षित (विरुद्ध) व आकर्षित विचारों का उत्सर्जन होता है। यह जीवन मृत्यु का कारक है।  हलाहल विष स्वरुप अनाकर्षित विचार से भय व आकर्षित विचारों के प्रति मोह, यही मोह व भय के विचार मनुष्य को जीवन-मृत्यु के चक्र में ग्रस्त होता है। किन्तु मनुष्य यह मोह व भय से परे परम तत्व को ज...

क्या प्राचीन उदार व प्रगतिशील भारतीय समाज कट्टरता की ओर ढकेला जा रहा है?

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क्या प्राचीन उदार व प्रगतिशील भारतीय समाज कट्टरता की ओर ढकेला जा रहा है? आज का लेख प्रश्न से प्रारंभ कर रहे है। ज्ञात हो की, भारतीय समाज प्राचीन समय से ही एक उन्नत, उदार व प्रगतिशील समाज रहा है। इसके परिणाम सवरूप भीन्न भीन्न मत व सम्प्रदायों में विभक्त भारतीय समाज ने बहाय लोगों द्वारा "हिन्दू" संज्ञा से उद्बोधन को भी स्वीकार कर हिन्दू शब्द को स्वयं के आस्था का प्रतिक बना लिया है। हमारे  शास्त्रों में धर्म पालन पर बल दिया गया।  यहाँ धर्म अर्थ कर्तव्यों से है। जैसे शाषकों का धर्म, नागरिकों का धर्म, ग्रहस्तों व ब्रम्ह्चारियों का धर्म। शास्त्रों में परमेश्वर की विभन्न रूपों में वर्णन हुवा है।    प्राचीन भारतीय विचारधारा में परमेश्वर की व्याख्या उदार है: एकं सद विप्रा बहुधा वदन्ति।। - ऋग्वेद एक ही परमं तत्व परमेश्वर को विद्वान् कई नामों से बोलते हैं। वैदिक विचारधारा के अनुसार आप उसे चाहे जो प्राकृतिक नाम दे सकते हैं। वह तो एक दिव्य, अनुपम अद्वितीय शक्ति की कल्पना इष्ट है, जो इस विश्व का उत्पादन, संरक्षण और संहरण करते हुए इसका संचालन कर रही हैं।   तदेजति तन्नेजति तददू...

नगरीय विकास में क्या क्षीण होगा नागरीकों को स्वास्थ?

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उपरोक्त शीर्षक में प्रश्नचिन्ह आवश्यक होगा पर निचे लेख में संभावित उत्तर पर चर्चा अवश्य की है. स्वस्थ सुखी जीवन के लिए संतुलित भोजन व व्यायाम अत्ति आवश्यक है. प्रायः ऊक्त पंक्ति आपने कई बार पढ़ी व सुनी होगी. यहाँ इसी विषय को किसी भिन्न रूप में प्रस्तुत करने का कोई विचार नहीं है. यहाँ स्वस्थ, सुखी जीवन व हमारे शहरी विकास के परस्पर सम्बन्ध पर चिंतन अवश्य किया है. यह आधुनिक जीवनशैली  की विडम्बना है कि हमारे आज के समाज में कई नवीन रोग अस्तित्व में आ गए है. उद्धरण स्वरुप मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, आखों की दृष्टी कम होना, मानसिक तनाव जैसे कई साधारण से रोग अब महामारी का रूप लेते जा रहे है. इन साधारण से प्रतीत होने वाले रोगों में हमारी आधुनिक जीवनशैली अधिक दोषी है. इस के साथ कई और परिस्थितिया भी हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. उन में से: अव्यवस्थित शहरी विकास हमारे भारतीय शहरी व्यवस्था हमें रोगी करने में भी कोई कमी नहीं करती. जनसंख्या वृद्धि से प्रभावित समस्याएं संभवतः हमारे शहरी विकास के कर्णधारों को अधिक मुक्तता नहीं देती के वे शहरों के पर्यावरण पर भी विचार करें. शहरी विकास योज...

पवित्र नदियाँ - पावन करती और प्रदूषित होती.

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गंगा, सिन्धु, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, शरयु, शिप्रा, ख्याता, गया व गण्डकी इन नदियों का उल्लेख एक संस्कृत श्लोक मे आता है व माना जाता है की बड़ी पवित्र है. भारतीय दर्शन में नदियों का महत्व सदा रहा है. हम आज भी उसी प्राचीन दर्शन के चलते नदियों को नित्य धार्मिक व जीवन के उपयोग में लेने का अधिकार समझते है. अंतर यह आया है की, प्राचीन काल में अधिकार के साथ कर्त्तव्य बोध भी होता था. मैंने पिछले लेख में स्नान की विधि का उल्लेख किया था, जिसमे प्राचीन काल में लोगो द्वारा नदियों में स्नान करने का व उसे स्वछ रखने का वर्णन किया था. हम अपने प्राचीन ग्रंथो का अध्ययन करे तो पायेंगे की हमारे पूर्वज प्राकृतिक संसाधनों का योग्य व प्राकृतिक सवर्धन का पूर्ण विचार करते थे. पुराण काल में की गई अनेक रचनाओ में इस विचार का अनेक स्थनों पर उल्लेख आता है. वेदों में प्रकृति के पञ्च तत्त्व को पांच देवो का रूप दिया गया व उनके दिव्य गुणों का वर्णन किया गया है. कालांतर में हमारी सभ्यता में ज्यो-ज्यो परिवर्तन आया, कुछ हमने लाया व कुछ बाहर के आक्रमणकारीयो के द्वारा प्रतिपादित उनके जीवन-मूल्यों, संस्...

प्राचिन स्नान विधि

प्राचिन वैदिक स्नान कोई विधा नही है जिसका यहां उल्लेख करा जा रहा है. दरसल यह नदियो मे स्नान करने की प्राचिन पद्धति है जो किसी सज्जन से ज्ञात हुई. विचार किया, आप से यह साझा करू. सो विषय प्ररम्भ होता है इस प्रकार - आज कल हम नदियों में स्नान करने जाते तो है पर, क्या हम योग्य रीति से स्नान करते है? अधिकांष लोग इस पर विचार भी नहीं करते होंगे व संभवतः इसका ज्ञान भी नहीं होगा. मेरे बचपन मे गर्मियों के दिनों मे हम बच्चे लोग गंगा नदी में हर दिन स्नान करने जाते थे. पर्यटक भी गर्मियों में भी बड़ी संख्या में आते, उन् मे ग्रामीण भारत से भी तीर्थटन के लिए लोग आते. दोनों शहरी व ग्रामीण लोगो के स्नान विधि मे बड़ा अंतर था. शहरी साधारण रूप से कपडे उतार कर सीधे नदी में स्नान करने लगते. हां! कुछ किशोर-किशोरिया लज्जा के चलते कपडे पहन कर ही स्नान करते या नदी के जल का मज़ा लेते. सामान्य तह: हम भी ऐसा ही करते थे. वहीँ ग्रामीण लोग उन मे भी वृद्ध जन का स्नान करने का अंदाज़ बिरला ही था. बड़े ही निशिन्तता से वे स्नान करते. कभी जिज्ञासा हुई तो पुछ लिया. उन मे से एक सज्जन ने बड़े विनम्रता से बताया की, हमे बचपन से ही इ...