प्राचिन स्नान विधि
प्राचिन वैदिक स्नान कोई विधा नही है जिसका यहां उल्लेख करा जा रहा है. दरसल यह नदियो मे स्नान करने की प्राचिन पद्धति है जो किसी सज्जन से ज्ञात हुई. विचार किया, आप से यह साझा करू. सो विषय प्ररम्भ होता है इस प्रकार -
आज कल हम नदियों में स्नान करने जाते तो है पर, क्या हम योग्य रीति से स्नान करते है? अधिकांष लोग इस पर विचार भी नहीं करते होंगे व संभवतः इसका ज्ञान भी नहीं होगा. मेरे बचपन मे गर्मियों के दिनों मे हम बच्चे लोग गंगा नदी में हर दिन स्नान करने जाते थे. पर्यटक भी गर्मियों में भी बड़ी संख्या में आते, उन् मे ग्रामीण भारत से भी तीर्थटन के लिए लोग आते. दोनों शहरी व ग्रामीण लोगो के स्नान विधि मे बड़ा अंतर था. शहरी साधारण रूप से कपडे उतार कर सीधे नदी में स्नान करने लगते. हां! कुछ किशोर-किशोरिया लज्जा के चलते कपडे पहन कर ही स्नान करते या नदी के जल का मज़ा लेते. सामान्य तह: हम भी ऐसा ही करते थे. वहीँ ग्रामीण लोग उन मे भी वृद्ध जन का स्नान करने का अंदाज़ बिरला ही था. बड़े ही निशिन्तता से वे स्नान करते.
कभी जिज्ञासा हुई तो पुछ लिया. उन मे से एक सज्जन ने बड़े विनम्रता से बताया की, हमे बचपन से ही इस तरह से नदी पर स्नान करने की आदत डाली गई है. आगे वे महानुभाव बोलते है की, यह प्राचिन काल से मनुष्यों के नदियों मे नहाने की विधि है जो ग्रंथो मे भी वर्णित है.
आगे वह महानुभव बोलते समय भावुक हो गये. उनकी यह भावना मैं अच्छी तरह समझ गया, आखिर कोई भी मनुष्य दूसरे के लगाये हुवे साबुन युक्त पानी मे कैसे नहायेगा? नदिया, सरोवर, कुण्ड व सागर यह सब परमात्मा के दिए उपहार है जो सार्वजनिक है. इसे पवित्र रखना सब लोगो को आवशक है.
मैं ने तभी से यह प्रण लिया की मैं जब भी किसी नदी या सरोवर / तालाब मे स्नान करू तो उन् नियमो का पालन करू. आखिर, प्राकृतिक संसाधनों को शुद्ध रखना हर मनुष्य का धर्म है.
आज कल हम नदियों में स्नान करने जाते तो है पर, क्या हम योग्य रीति से स्नान करते है? अधिकांष लोग इस पर विचार भी नहीं करते होंगे व संभवतः इसका ज्ञान भी नहीं होगा. मेरे बचपन मे गर्मियों के दिनों मे हम बच्चे लोग गंगा नदी में हर दिन स्नान करने जाते थे. पर्यटक भी गर्मियों में भी बड़ी संख्या में आते, उन् मे ग्रामीण भारत से भी तीर्थटन के लिए लोग आते. दोनों शहरी व ग्रामीण लोगो के स्नान विधि मे बड़ा अंतर था. शहरी साधारण रूप से कपडे उतार कर सीधे नदी में स्नान करने लगते. हां! कुछ किशोर-किशोरिया लज्जा के चलते कपडे पहन कर ही स्नान करते या नदी के जल का मज़ा लेते. सामान्य तह: हम भी ऐसा ही करते थे. वहीँ ग्रामीण लोग उन मे भी वृद्ध जन का स्नान करने का अंदाज़ बिरला ही था. बड़े ही निशिन्तता से वे स्नान करते.
कभी जिज्ञासा हुई तो पुछ लिया. उन मे से एक सज्जन ने बड़े विनम्रता से बताया की, हमे बचपन से ही इस तरह से नदी पर स्नान करने की आदत डाली गई है. आगे वे महानुभाव बोलते है की, यह प्राचिन काल से मनुष्यों के नदियों मे नहाने की विधि है जो ग्रंथो मे भी वर्णित है.
विधि वह बताते है:
१. सर्वप्रथम नदीजल को प्रणाम करे, इससे मनुष्य की परमेश्वर के सांसारिक उपयोग के वास्तु के प्रति विनम्रता प्रतीत होती है.
२. एक बड़े पात्र में जल नदी से लेकर उससे अपने संपूर्ण शारीर को नदी से दूर स्थल पर धोडले, इससे उस व्यक्ति के शारीर का मल बाहर के भूमि पर रह जाता है, अन्यथा वह मल नदी मे समाकर नदी को दूषित कर सकता है.
३. स्नान के लिए नदी मे प्रवेश करते समय पहने हुवे मेले वस्त्र निकाल दे, योग्य लगे तो जल पात्र में ले उन्हें धोडाले.
४. नदी मे स्नान करते समय कुलाह नहीं करे.
५. प्राचिन काल में तो साबुन तो नहीं था, फिर भी जो लेप-उबटन लगाया जाता था वह धोया भी नदी के बहार ही जाता था. आजकल साबुन लोग दढल्लेसे नदियों मे स्नान करते समय लगाते है पर उसे नदी में ही धो डालते है जो सर्वत अयोग्य है.
आगे वह महानुभव बोलते समय भावुक हो गये. उनकी यह भावना मैं अच्छी तरह समझ गया, आखिर कोई भी मनुष्य दूसरे के लगाये हुवे साबुन युक्त पानी मे कैसे नहायेगा? नदिया, सरोवर, कुण्ड व सागर यह सब परमात्मा के दिए उपहार है जो सार्वजनिक है. इसे पवित्र रखना सब लोगो को आवशक है.
मैं ने तभी से यह प्रण लिया की मैं जब भी किसी नदी या सरोवर / तालाब मे स्नान करू तो उन् नियमो का पालन करू. आखिर, प्राकृतिक संसाधनों को शुद्ध रखना हर मनुष्य का धर्म है.
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